Rasi D1 and Navamsa D9
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Venus in Different Houses in Astrology
In astrology, the 12 houses are symbolic of different facets of our lives. Each one is associated with a specific area, such as relationships, career, health, wellbeing, and spirituality. When the Venus is present in a particular house, it adds its own unique energy and influence to that area.Order Reports|For consultation

Here's a breakdown of the Venus's influence in each of the 12 houses:Choose the language to read below
शुक्र / SHUKER
जिसके लग्न स्थान में शुक्र हो तो उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राज कार्य में दक्ष होता है। शुक्र मीन राशि में उच्च का और कन्या राशि में होने पर नीच का होता है। तुला राशि में मूल त्रिकोण का होता है। शुक्र ग्रह का जीवन में महत्वपूर्ण रोल होता है। यदि शुक्र बलवान है तो लगभग हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है और यदि नीच का है या कमजोर है तो शारीरिक दुर्बलता, विवाह में देरी, गुप्त सम्बन्धों से बदनामी, मूत्र सम्बन्धी बीमारियॉ होना व प्रेम के मामलों असफलता ही हाथ लगती है।
Venus In the First House
प्रथम भाव- शुक्र एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है। पत्रिका में केवल इनकी शुभ स्थिति ही जातक के जीवन को संवार देती है। इस भाव में शुक्र जातक को दीर्घायु, सुन्दर, ऐश्वर्यशाली, मधुर बोलने वाला, भोग-विलास में लीन, कामी प्रवृत्ति के साथ काम कला में प्रवीण व राज्य से लाभ लेने वाला होता है। ऐसा जातक कला के साथ गीत-संगीत में भी रुचि रखता है। अपने शरीर को स्वच्छ रखने के साथ अच्छे वस्त्र धारण करने का शैकीन व सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग करने वाला होता है। यहाँ पर शुक्र जातक को विपरीत लिंग में प्रिय बनाता है। वह विपरीत लिंग को कैसे और कब वश में करता है, यह कोई नहीं समझ पाता है। इसके साथ ही वह अपनी आयु से कम दिखाई देता है। यदि शनि साथ में बैठा हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है। घर के बाहर शारीरिक सम्बन्ध अवश्य बनाता है।
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Venus In the Second House
दूसरे स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी व भाग्यवान होता है। द्वितीय (धन भाव)- इस भाव में शुक्र जातक को धनवान, मीठा अधिक पसन्द करने वाला, समाज में यश व सम्मान पाने वाला, सुखी, रत्नों से आर्थिक लाभ लेने वाला, कुटुम्ब युक्त, साहसी, कविता करने वाला तथा अत्यधिक मधुर बोलने वाला, सुन्दर नेत्र युक्त व कर्त्तव्य परायण बनाता है। ऐसे जातक का जीवनसाथी प्रत्येक क्षेत्र में उसका सहयोग करता है। जातक स्वयं भी शृंगार अथवा भौतिक-विलास की वस्तुओं से अधिक आर्थिक लाभ लेता है।
Venus In the Third House
तीसरे भाव पर शुक्र हो तो वह स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कृपण, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है। तृतीय (पराक्रम भाव)- इस भाव में शुक्र के प्रभाव से जातक सुखी, धनवान परन्तु उच्चस्तरीय कंजूस, विद्वान, चित्रकार, पराक्रम से भरा हुआ, भाग्यशाली तथा पर्यटन प्रेमी होता है। ऐसे व्यक्ति के कई भाई-बहिन होते हैं। लेखन कार्यों में यश प्राप्त करता है। ऐसे जातक के किसी भी यात्रा में किसी से प्रणय सम्बन्ध का योग होता है। इस भाव में शुक्र यदि अकेला हो तो अशुभ फल की अधिक उम्मीद होती है लेकिन यदि सूर्य प्रथम अथवा पंचम भाव में हो तो कुछ शुभ फल की आशा होती है।
Venus In the Fourth House
चतुर्थ भाव पर यदि शुक्र हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहारकुशल व दक्ष होता है। चतुर्थ (सुख भाव)- इस भाव के शुक्र के प्रभाव से जातक दीर्घायु, भाग्यवान, परोपकारी, विलासी प्रवृत्ति, ईश्वर में विश्वास, सभी से अच्छा व्यवहार करने वाला व पुत्रवान होता है। ऐसा जतक भवन-वाहन का पूर्ण सुख भोगता है। वह भूमि के साथ माता से भी लाभ प्राप्त करता है। अपने निवास व कार्यालय को भी भौतिक वस्तुओं से अपनी इच्छानुसार सजाता है। उसका गृहस्थ जीवन प्रायः शान्त ही होता है।
Venus In the Fifth House
पांचवें भाव पर पड़ा हुआ शुक्र शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भोगी, न्यायप्रिय, उदार व व्यवसायी होता है। पंचम (संतान व विद्या भाव)- इस भाव में शुक्र जातक को सुखी, सद्गुणी परन्तु भोग-विलास में लीन, विद्वान, ईश्वरवादी तथा सभी के साथ न्याय करने वाला बनाता है। ऐसा जातक काव्य व कलाप्रवृत्ति का, सट्टे-लाटरी के साथ प्रणय व्यापार में लाभ लेने वाला होता है। उसके बहु कन्या सन्तति होती है जो अत्यधिक सुन्दर व शालीन होती है। पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कंुभ) में होने पर पुत्र सन्तति ही होती है परन्तु जीवनसाथी की पत्रिका के योग पर कन्या पुत्र के बाद हो सकती है। ऐसे जातक अपने जीवनसाथी के प्रति सम्मान व प्रेम रखते हैं।
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Venus In the Sixth House
छठवां, शुक्र जातक के नित नए शत्रु पैदा करता है। मित्रों द्वारा इसका आचरण नष्ट होता है और गलत कार्यों में धन व्यय कर लेता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीन, दुराचार, बहुमूत्र रोगी, दुखी, गुप्त रोगी तथा मितव्ययी होता है। षष्ठम (शत्रु व रोग भाव)- इस भाव में शुक्र के शुभ फल अधिक मिलते हैं, मतान्तर से शुक्र यहाँ निष्फल होता है लेकिन अधिक मत शुक्र के शुभ फल देने के हैं। शुक्र के निष्फल होने के मत में जातक शारीरिक रूप से सुखहीन, दुराचारी, अधिक मित्र वाला, मूत्र रोग से ग्रसित, विपरीत लिंग में प्रिय, गुप्तरोगी, समस्त प्रकार के वैभव व सुख से रहित, संकीर्ण मानसिक प्रवृत्ति का, शारीरिक रूप से भी अववस्थ व अक्षम, सदैव दुःखी रहने वाला परन्तु शत्रुनाशक तथा विवाहोपरान्त भाग्योदय अवश्य होता है। दूसरे मत में अर्थात् शुक्र के शुभ फल में जातक अत्यधिक सुख प्राप्ति, धनवान, अधिक शारीरिक सुख प्रापत करने वाला तथा समस्त प्रकार के वैभव को भोगने वाला होता है।
Venus In the Seventh House
सातवें स्थान का शुक्र खूबसूरत जीवनसाथी का संकेत देता है। इस स्थान में शुक्र व्यक्ति को काम भावनाओं की ओर प्रवृत्त करता है। व्यक्ति कलाकार भी हो सकता है। सप्तम (जीवनसाथी भाव)- यह भाव शुक्र का कारक भाव है परन्तु मेरे शोध के अनुसार इस भाव में शुक्र शुभ फल अधिक नहीं देता है। ऐसा जातक जीवनसाथी से सुख प्राप्त करने के साथ धनवान, उदार प्रवृत्ति का, समाज में लोकप्रिय (मेरे अनुभव में जातक का नाम तो अवश्य होता है परन्तु बुरे रूप में भी होता है)। गीत-संगीत व साहित्य में रुचि, विवाह के बाद भाग्योदय, किसी चिन्ता से ग्रसित रहने वाला तथा व्यभिचारी भी होता है। ऐसा जातक सौन्दर्य प्रेमी के साथ अपने जीवन का रहन-सहन उच्च स्तर का रखता है। जातक विवाह के बाद भी अन्यत्र सम्बन्ध रखता है।
Venus In the Eighth House
आठवें स्थान में शुक्र हो तो जातक वाहनादि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। वह दीर्घजीवी व कटुभाषी होता है। इसके ऊपर कर्जा चढ़ा रहता है। ऐसा जातक रोगी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, दुखी, पर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है। यदि शुक्र अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक विदेश में निवास करता है, अष्टम भाव में शुक्र यदि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक गुप्त रोगी होता है और उसके कई अवैध सम्बन्ध भी हो सकते है ! जातक माता को कष्ट अवश्य देता है अधिक काम वासना होने के कारण अपने से बड़ी उम्र की स्त्री के साथ सम्बन्ध बनता है ! यदि बुध कुंडली में शुभ हो तो एक अच्छा ज्योतिषी बन सकता है, यदि मंगल भी शुक्र के साथ अष्टम भाव में हो तो पति या पत्नी की मृत्यु जल्दी होती है !अष्टम भाव में यदि शुक्र बलि हो तो व्यापर, जुआ, और स्त्री द्वारा धन लाभ होता है तथा विवाह उपरांत भाग्य उदय अवश्य होता है !
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Venus In the Ninth House
यदि नौवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक अत्यंत धनवान होता है। धर्मादि कार्यों में इसकी रुचि बहुत होती है। सगे भाइयों का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक, गुणी, प्रेमी, राजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है। नवम (धर्म व भाग् भाव)- इस भाव में शुक्र के प्रभाव से जातक दयालु प्रवृत्ति का, तपस्वी, ईश्वर पर विश्वास, गृह सुखी, राज्य में सम्मान प्राप्त, गुणवान तथा कई तीर्थयात्रा तथा लम्बी विदेश यात्रा करने वाला होता है। विदेशों में कलात्मक अथवा साहित्यिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। ऐसे जातक का विवाह परदेसवासी से होता है। विवाह से आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। विवाह के बाद भी जीवनसाथी के परिवार के सदस्यों को भी लाभ प्राप्त होता रहता है। यह योग स्त्री की पत्रिका में हो तो वह कट्टर धर्मान्ध होती है। इस भाव में उच्च अर्थात् मीन का शुक्र अधिक अशुभ फल देता है।
Venus In the Tenth House
जिसके दशम भाव में शुक्र हो तो वह व्यक्ति लोभी व कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभाव-सा रहता है। ऐसा व्यक्ति विलासी, धनवान, विजयी, हस्त कार्यों में रुचि लेने वाला एवं शक्की स्वभाव का होता है। दशम (पिता व कर्म भाव)- इस भाव में शुक्र जातक को विलासी प्रवृत्ति का, राज्यमान, सुखी, ऐश्वर्यशाली, सभी के साथ न्याय करने वाला तथा गीत-संगीत व ज्योतिष में रुचि रखने वाला होता है। इस भाव का शुक्र जातक को राज्य में सम्मान अथवा कोइ्र पद के साथ पुरस्कार भी दिलवाता है। जातक विपरीत लिंग से भी आर्थिक सहायता व समृद्धि प्राप्त करता है। उसे उच्च अधिकारियों से भी लाभ प्राप्त होता है। ऐसा जातक देवताओं के साथ अपने माता-पिता की भक्ति में लीन रहता है। माता-पिता भी उसकी सेवा से प्रसन्न होकर अपनी पैतृक सम्पत्ति का अधिक हिस्सा उसे देते हैं। कानून के क्षेत्र का विद्वान होता है।
Venus In the Eleventh House
जिसकी जन्म कुंडली में ग्यारहवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदर, सुशील, कीर्तिमान, सत्यप्रेमी, गुणवान, भाग्यवान, धनवान, वाहन सुखी, ऐश्वर्यवान, लोकप्रिय, कामी, जौहरी तथा पुत्र सुख भोगता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन में कीर्तिमान स्थापित करता है। एकादश (आय भाव)- इस भाव में शुक्र शुभ फल अधिक देता है जो आर्थिक क्षेत्र में अधिक शुभ हो जाते हैं। जातक भाग्यवान, स्थिर लक्ष्मी का स्वामी, रत्नों व सफेद वस्तुओं से लाभ प्राप्त करने वाला, विलासी प्रवृत्ति, वाहनसुखी, गुणवान, ज्ञानवान, संगीत व फिल्मों का शौकीन व पुत्र सन्तति से युक्त होता है। ऐसे जातक की आयु के साथ ख्याति में भी वृद्धि होती है। व्यक्ति कला प्रेमी होता है। यह योग यदि किसी पुरुष की पत्रिका में निर्मित हो तो वह स्त्री वर्ग में बहुत लोकप्रिय होता है। एकसा जातक दिल का बहुत साफ होता है, अपने मित्रों का मन से हितैषी व समय पर समस्त प्रकार से मदद करने वाला होता है परन्तु उसे सही मित्र नहीं मिलते हैं। मित्रों की ओर से धोखा मिलता है। 24 से 37 वर्ष की आयु तक जीवन में संघर्ष रहता है तथा 36वें वर्ष में दुर्घटना के कारण विकलांगता आती है। वायां घुटना बेकार हो जाता है। जैसे-जैसे आयु अधिक होती है, वैसे ही धन के साथ यश वृद्धि भी अधिक होती जाती है। नशों के कारण कुछ आर्थिक अस्थिरता रहती है परन्तु कार्य सारे चलते रहते हैं।
Venus In the Twelveth House
जिसके बारहवें भाव में शुक्र हो, तब जातक को द्रव्यादि की कमी नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति स्थूल, परस्त्रीरत, आलसी, गुणज्ञ, प्रेमी, मितव्ययी तथा शत्रुनाशक होता है। द्वादश (व्यय भाव)- इस भाव में शुक्र के अन्य ग्रहों की अपेक्षा अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस भाव में भी शुक्र के शुभ फल का मुख्य कारण यह होता है कि जैसा ज्योतिष का नियम है कि जो भी ग्रह व्यय भाव अर्थात् इस भाव में बैठेगा तो वह अपने कारक फल का व्यय करेगा। शुक्र भाग का कारक है। जब वह अपने फल का व्यय करेगा तो जातक के भौतिक फल में वृद्धि होती है और भौतिक फल में वृद्धि तभी होती जब जातक आर्थिक रूप से समृद्ध होगा। ग्रन्थों के अनुसार जातक न्यायप्रिय, आर्थिक रूप से सम्पन्न, आलसी, शत्रुहन्ता, अवैध सम्बन्ध वाला, पतित विचार का, स्थूल शरीर तथा शीघ्रपतन के रोग से ग्रस्त (पुरुष पत्रिका में) होता है।
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