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Saturn in Different Houses in Astrology
In astrology, the 12 houses are symbolic of different facets of our lives. Each one is associated with a specific area, such as relationships, career, health, wellbeing, and spirituality. When the Saturn is present in a particular house, it adds its own unique energy and influence to that area.Order Reports|For consultation
Here's a breakdown of the Saturn's influence in each of the 12 houses:Choose the language to read below
शनि / Saturn
शनि के आदिदेवता प्रजापिता ब्रह्म और प्रत्यधिदेवता यम हैं। यह एक एक राशि में 30-30 महीने रहते हैं। यह मकर व कुंभ राशि के स्वामी है। इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय जप, नीलम धारण, काली गाय, भैंस, कस्तूरी व सुवर्ण का दान देना चाहिए। शनि संस्कृत का शब्द है। शनये कमति स:। इसका अर्थ है, अत्यंत धीमा। शनि की गति की बहुत धीमी है। शनि की गति भले ही धीमी हो पर शनि देव को बहुत की सौम्य देव माना जाता है। शनि देव सूर्य देव पुत्र होने के कारण बहुत ही शक्तिशाली हैं। जिस कारण मानवों और देवताओं में शनि देव का डर व्याप्त है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। शनि देव पाप और अन्याय करने वालों को अपनी दशा या अंतर दशा में दंडित करते हैं। ताकि प्रकृति का संतुलन बन रहे।
Saturn In the First House
प्रथम भाव- शनि जब कुंडली के प्रथम भाव में होता है तो जातक को कुरूप, अभिमानी, आलसी, बुरे विचार वाला होता है, बाल्यावस्था में पीड़ित में अधिकतर पीड़ित रहता है तथा स्वार्थी, एकान्तवासी, सदैव दूसरों का अहित सोचने वाला और धर्म के क्षेत्र में भी अलग विचार रखता है। शनि यदि वायु तत्व (मिथुन, तुला व कुंभ) राशि मे हो तो जातक व्यावहारिक, परिश्रमी, धार्मिक विचार वाला परन्तु आर्थिक क्षेत्र में अस्थिर होता है। पृथ्वी तत्व (वृषभ, कन्या व मकर) राशि का शनि जातक को चिढ़चिढ़ा स्वभाव, दूसरों से जलने वाला, शंकित स्वभाव का बनाता है। मकर राशि में व्यक्ति लोभी, दूसरों का धन हड़पने में कुशल, लालची तथा कंजूस बनाता है। शनि यदि तुला, मीन, धनु, मकर व कुंभ राशि में हो तो जातक राज्य अथवा समाज में सम्मान प्राप्त करने वाला, परिश्रमी, धनवान, गम्भीर स्वभाव का विद्वान तथा किसी सामाजिक संस्था में उच्च पद प्राप्त करने वाला होता है। शनि यदि किसी अन्य प्रभाव में आता है तो जातक को मूत्र विकार, वात विकार, पाचन में समस्या तथा किसी दुर्घटना के कारण सिर में चोट लगती है। यदि मंगल भी मारक होकर पीड़ित हो तो मृत्यु भी सम्भव है। शनि यदि अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि में हो तो जातक सभी से प्रेम से मिलने वाला, सरल हृदयी परन्तु अपनी बात सही सिद्ध करने के लिये झगड़ा करने वाला व बहस में भी वह आगे रहता है।प्रथम भाव में शनि केवल तुला व मकर राशि में ही शुभ फल देता है अन्यथा अन्य राशियों में अधिकतर अशुभ फल ही देता है। मेरे विचार में शायद यह भाव नैसर्गिक रूप से मेष राशि व पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है तथा मेष राशि में शनि नीचत्व प्राप्त करता है व पूर्व दिशा में शनि का दिग्बल क्षीण होता है, इसलिये इस भाव में अशुभ फल देता हे।
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Saturn In the Second House
द्वितीय (धन भाव)- कुंडली के दूसरे भाव में शनि अच्छे फल नहीं देता। परन्तु ऐसा जातक अपने जीवन में कई बार आर्थिक व सामाजिक समस्याओं का सामना करता है , समाज से विरक्त रहता है तथा जातक अपने घमण्डी स्वभाव के कारण व्यवसाय में भी असफल रहता है। तथा उचित अवसर खो देता है ! थोड़े लाभ के लिये उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती है तथा अत्यधिक कंजूसी के बाद भी धन संचय नहीं होता। साथ ही अपने गृहस्थ जीवन में भी बहुत दुःखी रहता है। यदि शनि तुला अथवा कुंभ राशि में हो तो शुभ फल दे सकता है। इस शनि के प्रभाव से जातक कठोर वाणी वाला तथा मुख रोगी होता है, किसी कारण वश भाई से बिछड़ना पड़ता है, कुम्भ और तुला राशि में शनि जातक को धन अवश्य देगा ! ऐसा जातक अपने जीवन साथी पर कभी भरोसा नहीं करता तथा उसे छोटी छोटी बातो पर प्रताड़ित करता रहता है ! 33 से 37 वर्षायु के मध्य जातक को एक घुटने में विकलांगता आ सकती है , जिसमें उसके बायें घुटने में अधिक चोट आती है। ऐसा जातक मांस-मदिरा का भी सेवन भी अधिक करता है ! ऐसे जातक के दायें नेत्र में भी कष्ट रहता है। इस भाव का शनि यदि अधिक पाप प्रभाव में हो तो जातक को अपना पेट पालने की भी हैसियत नहीं रहती ! इन सभी फलो के विपरीत यदि शनि यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक को पुश्तैनी धन और सम्पत्ति अवश्य प्राप्त होती है। सट्टा, शेयर, पुरानी वस्तुओं से तथा जन उपयोग कार्यों से अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसा व्यक्ति बहुत सोच-विचार कर ही किसी व्यापार में पैसा लगाता है तथा जिसमें भी लगाता है, उसमें लाभ प्राप्त होता है। अपने धन को ब्याज तथा शेयर में लगाकर अत्यधिक वृद्धि करता है। शनि यदि पृथ्वी तत्व (वृषभ, कन्या व मकर) राशि में हो तो पुश्तैनी सम्पत्ति नहीं मिलती है परन्तु जातक अपनी मेहनत से ही सम्पत्ति बना लेता है। शनि यदि अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि में हो तो जातक के दो विवाह हो सकते है तथा वह जीवन में धन संचय करने में असफल रहता है। ऐसा जातक पश्चिम दिशा में अधिक लाभ ले सकता है।
Saturn In the Third House
तृतीय (पराक्रम भाव)- कुंडली के तीसरे भाव में शनि अधिकतर अच्छे फल प्रदान करता है। ऐसा जातक बहुत ही हिम्मत वाला होता है, विद्वान होता है, निरोगी रहने वाला, सभा में सभी को मोहित करने वाला, भाग्यवान तथा शत्रुओं का नाश होता है। ऐसा जातक अपनी युवावस्था में बहुत कष्ट उठाता है। अपने पड़ोसी व भाई-बहिनों से हमेशा मानसिक मतभेद रखता है। यहाँ पर शनि यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक अपने भाइयों के लिये कष्टकारक होता है तथा बहिनों को भी उनके वैवाहिक जीवन में कष्ट उठाना पड़ता है। कई मामलो में बहिन विधवा अथवा भाई की मृत्यु होती देखि गयी है, इसलिये जातक को ऐसी स्थिति आने पर बहिनों तथा भाई की पत्नी व बच्चों का भरण-पोषण करना होता है। शनि यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो भाई की मृत्यु तो नहीं होती परन्तु आपसी विवाद बहुत होते हैं। सम्पत्ति के लिये विवाद हाता है जिसे सुलझाने के लिये न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है। सभी भाई यदि एक साथ रहते हैं तो किसी की भी उन्नति नहीं होती तथा संतान बाधा भी आती है। यदि सभी भाई अलग अलग रहना शुरू कर दे तो सभी की तरक्की हो सकती है, यहाँ शनि के साथ राहू भी हो तो जातक उन्नति तो बहुत करता है परन्तु विद्या प्राप्त नहीं हो पाती हे। यदि शनि तुला अथवा कन्या राशि में हो तो विवाह के बाद जातक की स्थिति अधिक खराब हो जाती है। चलता उद्योग बन्द हो जाता है।
Saturn In the Fourth House
चतुर्थ भाव में शनि यदि अपनी राशि में हो या उच्च की राशि में हो तो कुंडली में पंच महापुरुष योग का निर्माण होता है और इस योग के कारण जातक को ३५ वर्ष की आयु के पश्चात् ऐसी कामयाबी मिलती है की जातक अपने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता ! जातक धनवान, सुखी, पुश्तैनी सम्पत्ति प्राप्त करने वाला तथा भूमि अर्थात् खेती, खदान से लाभ प्राप्त करने वाला होता है परन्तु बहुत कंजूस होता है। यहाँ शनि दो विवाह का योग भी निर्मित करता है ! शनि यदि पृथ्वी तत्व (वृषभ, कन्या व मकर) राशि में हो तो जातक व्यापार में बहुत उन्नति करता है। परन्तु बड़ी से बड़ी नौकरी करने पर भी केवल सामान्य जीवन व्यतीत करते हें। माता पिता से विरोध होने के कारण जातक को पुश्तैनी सम्पति नहीं मिलती चाहे माता पिता अपनी संपत्ति को दान ही क्यों न कर दे ! ऐसे जातक को सौतेली माता का सुख प्राप्त होता है। वह स्वयं बहुत ही शान्त व गम्भीर होता है। शनि पर यदि किसी पाप ग्रह का प्रभाव हो तो जातक को अपने युवा पुत्र का वियोग सहना होता है। शनि यदि जल अथवा अग्नि राशि में हो तो जातक विज्ञान के विषयों में अधिक रुचि रखता है तथा उच्च शिक्षा भी इन विषयों में ही प्राप्त करता है।
Saturn In the Fifth House
शनि का पंचम भाव में फल | Saturn Effects in 5th house. पंचम भाव में शनि का फल पौराणिक ग्रन्थ में बहुत अच्छा नही बताया गया है। शनि के पंचम भाव में होने से व्यक्ति जितना बुद्धिमान और विद्वान होता है उससे ज्यादा दिखाने की कोशिश करता है। ऐसा जातक शनि प्रसन्न और सुखी जीवन व्यतीत करता है। जातक परिश्रमी और घूमने का शौक़ीन होता है। इस स्थान में शनि संतान सुख में कमी करता है। संतान उत्पत्ति में विलम्ब भी होता है। ऐसे जातक का संतान पंचम भाव का स्वामी तथा गुरु दोनों अशुभ ग्रह से प्रभावित हो तो या तो संतान होता ही नहीं है या एक संतान मरा हुआ होता है उसके बाद में संतान का सुख प्राप्त होता है यह स्थिति पूर्व या पश्च दोनों रूप में हो सकता है। वैसे प्रायः विद्वान पंचम शनि होने पर संतानहीनता की बात की है पराशर मुनि इस बात को नहीं स्वीकार करते है उनके अनुसार — “पंचमे पुत्रलाभंच बुधिमुद्यम सिद्धिकृत” अर्थात ऐसे जातक को पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। मेरा अपना भी यह अनुभव है की जातक को संतान सुख मिलता है हां वह संतान से परेशान अवश्य रहता है। इस स्थान का शनि शिक्षा में व्यवधान भी उत्पन्न करता है। ऐसे जातक की बुद्धि तो होती है परन्तु ऐसी वैसी आशंका से युक्त होती है। बुद्धि का संचार नकारात्मक ज्यादा सकारात्मक कम होता है। यही नहीं जातक के अंदर विश्वास का भी अभाव देखा गया है। यदि एक बार में कोई फैसला ले ले तो भगवान् ही मालिक। जातक जिद्दी और मनमौजी हो सकता है। ऐसा जातक निष्कपट ह्रदय नहीं होता है। यह भी कहा गया है की शनि के यहाँ होने से जातक दरिद्र, दुराचारी, दत्तक पुत्र होता है। गर्ग ऋषि के अनुसार —– सुत्तभवंगतोsरिमन्दिरस्थ सकल सुतान विनिहन्ति मंदगामी। समुदितकिरणः स्वतुंगमस्थ: कथमपि जनयेत सुतीक्षणमेकपुत्रं। अर्थात यदि पंचम भाव का शनि शत्रु घर में हो तो सब पुत्रो का नाश होता है और अयादि इस भाव का शनि उच्च में वा स्वराशि में हो तो तीक्ष्ण बुद्धि वाला पुत्र होता है। ऐसे जातक की बुद्धि कुटिल होती है। यदि शनि अशुभ स्थिति में है तो जातक को आलसी और दुर्बल शरीर वाला बनाने में समर्थ होता है। ऐसा व्यक्ति आप देवी-देवताओं और धार्मिक कार्य करने से कतराता है। यहाँ शनि धन सम्पत्ति को भी कम करता है। पंचम भाव का वक्री शनि प्रेम संबंध देता है परन्तु प्रेम में जातक प्रेमी को धोखा भी देता है। यदि प्रेमी शादी के बंधन में बन्धन में बंधना चाहता है तो इसके लिए बहुत ही पापड़ बेलना पड़ता है फिर भी सफलता में संदेह हो होता है। Upay | उपाय : हर शनिवार के दिन काली गाय को नियमित रोटी खिलाएं। चमड़े के जूते, बैग इत्यादि का दान करना चाहिए। शनि यंत्र धारण करें. शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करें। उपर्युक्त फल एक सामान्य फल है किसी भी कुंडली में किसी भी ग्रह का फल कुंडली में स्थित अन्य ग्रह के दृष्टि साहचर्य के आधार पर देखनी चाहिए अतः अपने बुद्धि विवेक तथा अनुभव के आधार पर ही फलित करे। जो जातक ज्योतिष नहीं जानते है वह कृपया इस फल को ब्रह्म सत्य न मानें क्योकि फलित सम्पूर्णता के आधार पर किया जाता है।
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Saturn In the Sixth House
शनि का छठे भाव में फल | Saturn Effects in sixth House. षष्ठ भाव में शनि सामान्यतः शुभ फल प्रदान करता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि छठे भाव में हो तो वह सुंदर, शूरवीर, कामी, ज्यादा खाने वाला, स्वभाव से कुटिल, शत्रुहंता (शत्रुओं को जीतने वाला) होता है। इस स्थान का शनि आपको अच्छे वक्ता और तर्ककुशल व्यक्ति बना सकते हैं। आपके शत्रु आपसे भयभीत रहेंगे। शत्रु आपका सम्मान करेंगे। आपका अपना तर्क होगा न्याय प्रिय व्यक्ति होंगे। आप शरीर से बलिष्ठ और शक्तिशाली हो सकते है। सामान्यतः आपका शरीर स्वस्थ्य, सुंदर, पुष्ट होगा। आपकी पाचनशक्ति भी ठीक रहेगा। आप खाने पीने के शौक़ीन होंगे। इस भाव का वक्री शनि निर्बल हो तो रोग, शत्रु एवं ऋण देने में समर्थ होता है। षष्ठ शनि वाला जातक गुणवान लोगो कद्र करते हैं। जातक अपने सामर्थ्यानुसार अल्प मात्रा में दान पुण्य में विश्वास करते है। आप विद्वानों में श्रद्धा रखते हैं परन्तु आप अपने आप को कम नही आंकते है। आप गुणवान और पवित्र कर्म करने वाले होते हैं । षष्ठ शनि के विषय में कहा गया है — अल्पज्ञाति: शत्रुक्षयः धनधान्य समृद्धि: अर्थात जातक के शत्रुओ का नाश होता है तथा जातक धनधान्य से समृद्ध होता है एक बात मै अपने अनुभव से कह सकता हू की व्यक्ति अपने बुद्धि बल और परिश्रम से धीरे धीरे धनी होता है न की अचानक। ऐसा व्यक्ति किसी की बहुत अधिक परवाह नहीं करता है । पराशर मुनि ने भी कहा है — “षष्ठे धनं जयं कुर्यात” अर्थात छठे भाव में शनि के स्थित होने से धनवान और विजेता होता है। यदि शनि का मंगल से संबंध बन रहा हो तो जातक विदेश भ्रमण करता है। ऐसा जातक बंधु बान्धवों से युक्त होता है। उपाय यदि जातक ज्यादा परेशान रह रहा है तो एक काला कुत्ता पालना चाहिए यदि ऐसा सम्भव न हो सके तो काले कुत्ते को रोटी खिलाना चाहिए। ॐ शं शनैश्चराय नमः का प्रतिदिन जप करें। उपर्युक्त फल एक सामान्य फल है किसी भी कुंडली में किसी भी ग्रह का फल कुंडली में स्थित अन्य ग्रह के दृष्टि साहचर्य के आधार पर देखनी चाहिए अतः अपने बुद्धि विवेक तथा अनुभव के आधार पर ही फलित करे। जो जातक ज्योतिष नहीं जानते है वह कृपया इस फल को ब्रह्म सत्य न मानें क्योकि फलित सम्पूर्णता के आधार पर किया जाता है।
Saturn In the Seventh House
शनि का 7 वें भाव में फल | Saturn Effects in 7th house. सप्तम भाव में स्थित शनि का फल अच्छा नही बताया गया है। इस जातक को अपने माता पिता के प्रति असीम प्यार होता है परंतु इनका ध्यान पैतृक संपत्ति के ऊपर भी रहता है। सप्तम भाव का शनि वैसे मित्र जो व्यक्ति को सफलता की उच्च शिखर पर ले जाने वाला होता है में बाधा उत्पन्न करता है। इस स्थान का शनि जातक को संतान कष्ट भी देता है। 7 वें भाव में शनि और दाम्पत्य जीवन सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का भाव है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है। सप्तम शनि होने से जातक की स्त्री कुरूपा-कटुभाषी- -कलहप्रिया होती है इसी कारण जातक का वैवाहिक जीवन नरक बन जाता है। यहाँ पर शनि स्थित होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से देरी से होती है। सामान्यतः जीवनसाथी की उम्र ज्यादा होती है ऐसा देखा गया है। दाम्पत्य जीवन में हमेशा कोई न कोई परेशानी आती ही रहती है। विवाह से धन लाभ या दहेज के रुप में धन लाभ मिलता है। दाम्पत्य जीवन में परेशानी का मुख्य कारण जीवन साथी के स्वभाव का मनोनुकूल न होना होता है। जातक को अविवाहित रहने की इच्छा भी होती है। पति या पत्नी के स्वभाव में जिद्दीपन होता है इसी कारण छोटी छोटी बातों को लेकर कलह शुरू हो जाती है जो गम्भीर रूप धारण कर लेता है। पत्नी के शरीर में कोई न कोई रोग बना रहता है। इस भाव में शनि यदि नीच राशि मे है तो यह संभावना रहती है कि जातक काम पीड़ित होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उससे उम्र में अधिक बड़ा हो 7 वें भाव में शनि और व्यावसायिक जीवन: सप्तम भाव में शनि वाला जातक नौकरी भी करता है और बाद में नौकरी छोड़कर अपना भी काम करने लगता है । आपका काम ठेकेदारी, बीमा एजेन्ट, बिल्डिंग बनाने इत्यादि से जुड़ा हुआ हो सकता है। वैसे आप शिक्षक, प्राध्यापक, गणक आदि कामों से जुड़कर भी अपना आजीविका चला सकते हैं। जातक को न्यायालय एवं राज्य से निराशा प्राप्त होती है। ऐसा जातक अपने व्यवसाय में पिता के सम्पत्ति का उपयोग करके खुद के व्यवसाय को आगे बढ़ाता है तथा स्वसम्पत्ति की वृद्धि करता है। Upay | उपाय हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमितरूप से खिलाएँ । अपने हाथ में घोड़े की नाल का शनि छल्ला धारण करें । शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करे। शनि देव का बीज मन्त्र का जप कमसे कम माला प्रत्येक शनिवार को अवश्य करें।
Saturn In the Eighth House
शनि का अष्टम भाव में फल | Saturn Effects 8th House. जन्मकुंडली में अष्टम भाव को शुभ नहीं माना गया है। यह त्रिक भाव भी है। इस भाव से व्यक्ति की आयु व मृत्यु के स्वरुप का विचार किया जाता है। शनि इस भाव का तथा मृत्यु का कारक ग्रह भी है। शनि यदि अष्टम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां दशम, द्वितीय तथा पंचम भावों पर रहती हैं। इस कारण व्यवसाय और उसके कार्य क्षेत्र ( Business Astrology by Date of Birth ) , धन, (जानें ! क्या आपकी कुंडली में धन योग है ) शिक्षा, संतान तथा मृत्यु आदि के फल पर शनि का प्रभाव पड़ता है। इस स्थान पर शनि अन्य ग्रहो की युति, दृष्टि व स्वामित्व के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है। ज्योतिष के ऋषि-आचार्य ने अष्टमस्थ शनि को शुभ नहीं माना है। किन्तु तार्किक रूप से यह कहा जा सकता है कि पापयुक्त शनि जब अशुभ अष्टम वा मृत्यु भाव में स्थित होकर उसे पीड़ित करे तो अष्टम भाव के अशुभत्व का नाश होगा अर्थात जातक दीर्घायु होगा। इस स्थान में शनि को आयुष्य कारक भी माना गया है। अष्टमस्थ शनि और जातक का स्वभाव | Saturn in 8th House & Nature इस भाव में स्थित शुभ शनि आपको शूरवीर, विद्वान, वाक्पटुता भी देता हैं। आप निर्भय चतुर और उदार प्रकृति के होंगे। आपका झुकाव गुढ़विद्या के प्रति भी हो सकता है। आप हमेशा दूसरों के दोष निकालने में अपना समय नष्ट करते है कई बार इस कारण से आपको बदनामी भी मिलती है। आप हृदय से संकुचित विचार वाले होते है। अकारण लोगो से पन्गा लेने में आपको मजा आता है। जातक संतोषी नहीं होता है उसके मन में लोभ का संचार हमेशा बना रहता है। यहां स्थित शनि आपको आलसी बना सकता है लेकिन आप स्वभाव से चालाक होंगे। आप मानसिक रूप से कुछ हद तक असंतुष्ट रह सकते हैं ( Mentally Depressed )। आपमें क्रोध की अधिकता और उत्साहहीनता देखने को मिलेगी। आप दूसरे के दोषों को बडी बारीकी से परख सकते हैं। आपको अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड सकता है। आपको अपने स्वभाव को पवित्र बनाते हुए अच्छे लोगों की संगति करने की सलाह दी जाती है। सामान्य फल विचार | General Effects यदि शनि अशुभ है तो चोरी के आरोप में पकड़ा जाने का भय बना रहता है या इस व्यक्ति पर झूठा मुकदमा भी चलता है। अष्टम भाव का शनि व्यक्ति को किसी न किसी व्यसन का का गुलाम बनाता है। ऐसे जातक को अपने मृत्यु का पूर्वाभास भी हो जाता है। तुला, मकर और कुम्भ राशि का शनि अष्टम भाव में वैवाहिक संबंध से धन लाभ कराता है। यदि शनि अशुभ है तो चोरी के आरोप में पकड़ा जाने का भय बना रहता है या इस व्यक्ति पर झूठा मुकदमा भी चलता है। अष्टम भाव का शनि व्यक्ति को किसी न किसी व्यसन का का गुलाम बनाता है। उत्तराधिकार में जमीन की प्राप्ति होती है। पारिवारिक जीवन पर शनि का प्रभाव | Saturn and Family Life अष्टम भाव में शनि हो तो व्यक्ति बंधु तथा परिवार से बैरभाव रखता है। ऐसे व्यक्ति को परिवार के सदस्यों से विशेष रूप से प्यार नहीं मिलता। ऐसा व्यक्ति निम्न स्त्री के साथ सम्बन्ध बना सकता है जिस कारण परिवार के सदस्यों को भी अपमानित होना पड़ता है। कहा जाता है की जातक को विवाह के बाद आर्थिक संकट आते हैं। आपके पुत्रों की संख्या कम होगी। स्वास्थ्य पर शनि का प्रभाव | Saturn Effects on Health यदि शनि जन्मकुंडली में अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसे में जातक को पाचन तन्त्र और पेट से जुडी समस्याएं परेशान करती है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति को जोड़ो का दर्द, दाँतों तथा नाखूनों से जुडी समस्याएं भी आती है। मृत्यु दीर्घकालिक रोग से होने की संभावना रहती है। यदि शनि इस स्थान पर अशुभ ग्रहों से पीड़ित है तो अचानक मृत्यु देता है।ऐसे जातक को अपने मृत्यु का पूर्वाभास भी हो जाता है। व्यवसाय और शनि | Saturn and Career ऐसा जातक सामान्यतः नौकरी ( जानें ! कब मिलेगी नौकरी ?) करता है। अष्टम भाव में शनि जातक की आजीविका या कैरियर में ब्यवधान उत्पन्न करता है। व्यक्ति अपने कैरियर को लेकर हमेशा परेशान रहता है। कैरियर में स्थिरता नहीं आ पाती और यदि आती भी है तो विलम्ब से। राजनैतिक क्षेत्र ( Know ! Politician Yog in Horoscope) में शनि सकारात्मक परिणाम नही दे पाता है इसका मुख्य कारण है की जातक को जनता का अच्छा सहयोग और जनसमर्थन नहीं मिल पाता इस कारण से सीधे चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पाता या बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति एक सामान्य जीवन व्यतीत करता है। व्यक्ति घर से दूर रहकर आजीविका प्राप्त करता है तो कष्ट का अनुभव करता है। Upay | उपाय जातक अपने आप को मांस मदिरा से दूर रखे तो शनि शुभ फल देगा। गले में चाँदी की चेन धारण करना चाहिए। काला कुत्ता को नियमित रोटी खिलाये। शनिवार के दिन आठ किलो उड़द बहती नदी में प्रवाहित करें। उपर्युक्त फल एक सामान्य फल है किसी भी कुंडली में किसी भी ग्रह का फल कुंडली में स्थित अन्य ग्रह के दृष्टि साहचर्य के आधार पर देखनी चाहिए अतः अपने बुद्धि विवेक तथा अनुभव के आधार पर ही फलित करे। जो जातक ज्योतिष नहीं जानते है वह कृपया इस फल को ब्रह्म सत्य न मानें क्योकि फलित सम्पूर्णता के आधार पर किया जाता है।
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Saturn In the Ninth House
शनि का नवम भाव में फल | Saturn Effects 9th House. जन्मकुंडली में नवम भाव को भाग्य भाव के नाम जाना जाता है। यह त्रिकोण भाव भी है। इस भाव से जातक भाग्य तथा पिता की स्थिति का विचार किया जाता है। शनि यदि नवम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां एकादश, तृतीय तथा षष्ठ भावों पर रहती हैं। यदि शनि स्थित है तो उसकी दृष्टियों का प्रभाव जातक के लाभ, परिश्रम और शत्रु क्षेत्र पड़ता है। इस भाव में स्थित शनि अन्य ग्रहो की युति, दृष्टि व स्वामित्व के अनुसार शुभ-अशुभ फल प्रदान करता है। ज्योतिष के ऋषि-आचार्य ने नवमस्थ शनि को सामान्य फल देना वाला कहा है। किन्तु तार्किक रूप से यह कहा जा सकता है कि पापयुक्त शनि जब नवम वा भाग्य भाव में स्थित होकर उसे पीड़ित करे तो नवम भाव के शुभत्व नष्ट होगा अर्थात जातक के भाग्यवृद्धि में कमी होगी। नवमस्थ शनि के सम्बन्ध में आचार्य का मत—- प्राचीन आचार्य मंत्रेश्वर के मत में नवमस्थ शनि का फल — भाग्यार्थात्मजतात धर्मरहितो मंदे शुभे दुर्जनः। अर्थात यदि शनि नवम में हो तो जातक दुष्ट भाग्यहीन, धनहीन, धर्महीन, पुत्रहीन तथा पितृहीन होता है। हालांकि मेरे अनुसार यह फल उचित नहीं है। हां भाग्य वृद्धि में रुकावट अवश्य देता है। अन्य विद्वान् पराशर मुनि ने कहा है —- नवमे मित्रबन्धनं भाग्यहानिश्च अर्थात यदि नवम स्थान में शनि ग्रह स्थित है तो जातक की भाग्य की हानि होती है तथा मित्रों को जेल होता है। नवमस्थ शनि और जातक का स्वभाव | Saturn in 9th House & Nature नवम भाव का शनि मिश्रित फल देने में समर्थ होता है। यदि शनि इस स्थान में उच्च का होता है या अपने घर का होता है तो जातक स्वभाव से निडर, स्थिरचित्त, शुभकर्म करने वाला, भ्रमणशील और धर्मात्मा होता है।जातक सॉफ्टस्पोकेन होगा। वह विचारशील, दानी और दया भाव रखने वाला व्यक्ति होता हैं। ऐसे लोग आध्यात्म में विशेष रुचि रखने वाले होते हैं। तीर्थयात्राओं में भी इनकी अच्छी रुचि होती है। यदि शनि नीच का या शत्रु क्षेत्री होता है उपर्युक्त विषयो के विपरीत फल देता है। ऐसा जातक अपने विचारो में खोया रहता है तथा यह धर्म परिवर्तन में विश्वास रखने वाला हो सकता है। शनि का नवम भाव में फल : सामान्य फल विचार ऐसा व्यक्ति ज्योतिष और तंत्र जैसे विषयों के प्रति विशेष रूचि रखता है। यहां स्थित शनि आपको बडी प्रसिद्धि देगा। व्यक्ति अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा कार्य भी करता है जो मरने के बाद भी लोग याद करते हैं। जातक के शरीर के अंगो में कही पर विकार और हीनता होती है। जातक का स्वभाव तथा बुद्धि दुष्ट होते हैं। नवमस्थ शनि यदि उच्च में अथवा अपनी राशि में हो तो जातक के पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म दोनों अच्छे होता है। जातक महेश्वर यज्ञ करनेवाल विजयी राजचिन्हो तथ राजा के वाहनों से युक्त होता है। शनि ( Saturn ) के नवम भाव में होने से जातक अधिकार प्राप्त करता है वा अधिकारी के रूप में कार्य करता है। ऐसा जातक तालाब मंदिर इत्यादि का निर्माण भी कराता है। यदि शनि के साथ कोई पाप ग्रह हो या शनि खुद ही कमजोर है तो पिता के लिए खराब फल देता है। इस स्थान में शनि पिता के सुख में कमी करता है। पिता की शीघ्र मृत्यु होती है। यदि पिता जीवित होती है पिता और पुत्र में परस्पत वैमनस्य रहता है। जातक को पिता की सम्पति विरासत में मिलती है। जातक 27 वे वर्ष में स्वयं से काम करना शुरू करता है। जातक का यदि भाई-बहन है तो उसका अनबन रहता है।
Saturn In the Tenth House
शनि का दशम भाव में फल | Saturn Effects in Tenth House. जन्मकुंडली में दशमभाव को कर्म भाव के नाम जाना जाता है। इसे केंद्र स्थान कहा जाता है। इस भाव से जातक के व्यवसाय मान-सम्मान तथा कर्म सेसंबंधित सभी विषयों का विचार किया जाता है। शनि यदि दशम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां द्वादश , चतुर्थ तथा सप्तम भावों पर रहती हैं। यदि शनि दशम भाव में स्थित है तो उसकी दृष्टियों का प्रभाव जातक के व्यवसाय , बंधू-बांधव और वैवाहिक क्षेत्र पड़ता है। इस भाव में स्थित शनि अन्य ग्रहो की युति, दृष्टि व स्वामित्व के अनुसार शुभ-अशुभ फल भी प्रदान करता है। दशमस्थ शनि और जातक का स्वभाव | Nature of Saturn in Tenth House दशम भाव का शनि मिश्रितफल देता है। यदि शनि इस स्थान में उच्च का है या अपने घर (मकर और कुम्भ राशि) का है तो जातक स्वभावसे ही कर्मशील होता है वह दत्तचित्त होकर कोई कार्य करता है। वह शुभकर्म करने के साथ साथ कर्म को पूजा समझने वाला होता है। ऐसा जातक सत्यासत्य विचार के मध्य सत्य को वरण करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति को प्राज्ञ कहा जाता है। ऐसा जातक विचारशील, दानी और दया भाव रखने वाला भी होता हैं। यदि शनि नीच का या शत्रु क्षेत्री होता है उपर्युक्त विषयो के विपरीत फल देता है। शनि का दशम भाव में फल : सामान्य फल विचार ऐसा व्यक्ति धनवान,नौकरों द्वारा सम्मानित, तथा पूजित, शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला, शत्रुहन्ता तथा प्रवासकाल में मान-सम्मान प्राप्त करने वाला होता है । जातक महत्वाकांक्षी तथा सरकारी पद ( IAS, IPS Yoga in Birth Chart ) भोगने वाला होता है। दशम भावस्थ शनि माता-पिता के सुख में कमी करता है। वह पूरी तरह से अपने पैतृक संपत्ति का उपभोग नहीं कर पाता है बल्कि अपने परिश्रम से उपार्जित धन से भौतिक सुख और यश प्राप्त करता है ।ऐसा जातकअपने बाहुबल तथा परिश्रम पर विश्वास करता है । वह अपने बुंद्धि कौशल से संपत्ति तथामान-सम्मान प्राप्त करता है। यदि उच्च का शनि हो तो वह मंत्री, कोषाधिकारी, दंडाधिकारीसदृश महत्वपूर्ण राजकीय पद धारण करता है । कर्म भाव में शनि और व्यवसाय ऐसा व्यक्ति प्रतिष्ठित और प्रभावी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी के रूप में काम करता है | ऐसे व्यक्ति विधि एवं न्यायालय के क्षेत्र में ख्याति, उच्च पद एवं धन प्राप्त करता है | जातक अपने पुरुषार्थ एवं सौभाग्य से लगातार विकास करते रहता है | दशमस्थ शनि वक्री हो तो जातक वकील, ( Criminal Lawyer Yoga in Birth Chart ) न्यायाधीश, गांव का मुखिया या मंत्री होता है। जातक जीवन भर धर्म के कामों में रुचि लेता है और लोग इनसे बहुत प्रेम करते हैं। दशम भाव में अशुभ शनि का फल यदि शनि अशुभ ग्रह यथा सूर्य, मंगल, राहु इत्यादि से युत हो तो अशुभ फल देने में सहायक होता है। अगर यहां किसी क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक गैरकानूनी कामों में संलप्ति हो सकता है। जिससे जातक की बदनामी भी हो सकती है। शनि किस राशि में शुभ फल देता है। शनि यदि दशम भाव में मकर, तुला, कुम्भ तथा मिथुन राशि में बैठा है और शुभ ग्रह से युत है तो शुभ फल प्रदान करता है | इसी भाव में शनि यदि मेष, वृश्चिक एवं मीन राशि में स्थित है तो अशुभ फल देने में समर्थ होता है।
Saturn In the Eleventh House
शनि यदि कुंडली के ग्यारहवे भाव में हो तो जातक धन कमाने में चतुराई रखता है। अपने व्यापार को चलने की लिए रिश्वत भी देता है ! यदि जातक किसी सरकारी विभाग में हो तो रिश्वत अवश्य लेता है, यदि गुरु का प्रभाव लग्न पर हो तो जातक रिश्वत ठुकरा सकता है ! जातक के जीवन में 35 वर्ष की आयु के पश्चात् जीवन में स्थिरता आती है। जातक मेहनती अवश्य होता है परन्तु प्रेम प्रसंग में धोखा प्राप्त करता है ! कुंडली के ग्यारहवे भाव में शनि अधिकतर शुभ फल प्रदान करता है। जातक की आयु लम्बी होती है, कन्या सन्तति अधिक व पुत्र कम अथवा नहीं होते। व्यापार में सफल,आर्थिक रूप से समृद्ध, भाग्यशाली तथा ईश्वर में विश्वास करने वाला परन्तु अत्यंत क्रोधी होता है। शनि ग्यारहवे भाव में जीवन के प्रारम्भ में संघर्ष देता है परन्तु अंत के 20 वर्ष में बहुत सुख उठाता है। इसमें भी यदि शनि लग्नेश तुला, मकर, धनु अथवा कुंभ राशि में हो तो अधिक शुभ प्रभाव देता है। किसी व्यसन के कारण जातक धन संचय में असमर्थ होता है लेकिन उसका कोई कार्य रुकता नहीं है। शनि ग्यारहवे भाव में किसी भी राशि में क्यों न हो, जातक किसी से कर्ज लेता है तो वह कर्ज चुका पाने की स्थिति में नहीं होता है अथवा चुकाना नहीं चाहता है। सब कुछ होते हुए भी वह कर्ज मुक्त नहीं हो पाता है। जातक यदि कर्ज चुकाने की ठान ले तो फिर कर्ज चुकाने का प्रयास करता है व चुका देता है। शनि ग्यारहवे भाव में संतान पक्ष के लिये कष्टकारी होता है। यदि जीवनसाथी की पत्रिका में संतान के योग अच्छे है तो ठीक अन्यथा समस्या अधिक होती है। लेकिन एक बात तो पक्की होती है कि शनि लग्नेश होने से संतान समय पर होती है अन्यथा संतान प्राप्ति में विलम्ब तो अवश्य ही होता है। यहाँ पर शनि किसी भी राशि में हो परन्तु आयु के 35वें वर्ष में दुर्घटना से विकलांगता की सम्भावना बनती है, जिसमें बायें घुटने व कमर में अधिक चोट आती है। यदि केतू लग्न में बैठा हो तो चेहरे पर चोट आ सकती है, यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो अधिक दुर्घटनाये होती है। यदि शनि लग्नेश हो तो दुर्घटना के बाद भी जीवन सुरक्षित रहता है। शनि यदि द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु व मीन) राशि में हो तो जातक जीवनभर संघर्ष करता रहता है। शनि के साथ कोई पाप ग्रह हो अथवा शुभ ग्रह पाप प्रभाव में हो तो जातक का धन उसके मित्रों के द्वारा अधिक खर्च होता है ! शनि मिथुन, सिंह अथवा धनु राशि में पुत्र संतान होने की सम्भावना कम होती है, यदि हो भी जाये तो पुत्र बड़ा होकर अपने पिता से मानसिक विरोध रखता है। शनि यदि सूर्य अथवा चन्द्र से अशुभ योग बनाये तो जातक बिलकुल दरिद्र होता है।
Saturn In the Twelveth House
बारहवा भाव (व्यय भाव)- बारहवे भाव के शनि के प्रभाव से जातक अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का होता है ! इसलिए अशुभ फल अधिक प्राप्त होते है ! यदि आरम्भ से ही सावधानी रखे तो फिर शुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं। उपाय करने से व्यक्ति के आर्थिक रूप से समृध की सम्भावना बनती है क्योंकि यदि आप उपाय करेंगे तो शनि अपना शुभ फल अवश्य ही देंगे। जातक अत्यधिक व्यय तभी करेगा जब उसके पास धन होगा। जिनका शनि बारहवे स्थान में हो ऐसे लोग अपने कार्यों का स्वयं ही नाश कर लेते हैं। बाहर खाना-पीना कम करना चाहिये बारहवे स्थान के शनि वालों को विषैले प्रदार्थ और षड़यंत्र करियों से सावधान रहना चाहिए ! क्योंकि इस योग के प्रभाव से जातक को विष देने का प्रबल योग होता है। किसी भी कार्य को किसी अन्य के कहने पर नहीं करना चाहिये अन्यथा किसी शत्रु के षड्यंत्र अथवा झूठे लांछन का शिकार होकर मान-प्रतिष्ठा जाने की सम्भावना रहती है। इस भाव में शनि मंगल का योग विशेष अशुभ फल देता है, क्योंकि इस योग में जातक की मृत्यु रक्तपात से होती है चाहे किसी दुर्घटना में अथवा किसी के द्वारा हत्या हो। यदि चन्द्र भी अशुभ अथवा मारकेश हो तो जातक आत्महत्या भी कर सकता है। बारहवे भाव में शनि जातक को एकांत प्रिय बनता है ! ऐसा जातक व्यवसाय में असफल रहता है और अपने शत्रुओं से पीड़ा उठाता है लेकिन किसी गुप्त विद्या का ज्ञानी भी होता है।ऐसे लोगों को सदैव जानवरों से भी सतर्क रहना चाहिये। क्योकि विष योग होने के कारण विषैले जानवरो से खतरा होता है ! अशुभ शनि का प्रभाव यदि बुद्ध पर हो तो जातक पागलपन का शिकार होकर अपने शरीर को कष्ट देता है ! शनि का अशुभ प्रभाव यदि सूर्य पर हो तो जातक की ह्रदयाघात मृत्यु का योग बनता है ! ऐसे जातको को अपने ह्रदय का विशेष ख्याल रखना चाहिए और खान पान सही रखना चाहिए ! इस भाव में शनि के अशुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं। जातक मानसिक रोगी, व्यर्थ के व्यय करने वाला, किसी व्यसन का अभ्यस्त, बुरे शब्द व अनुचित भाषा बोलने वाला, आलसी तथा मामा-मौसी के लिये कष्टकारक होता है।
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