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Rahu in Different Houses in Astrology
In astrology, the 12 houses are symbolic of different facets of our lives. Each one is associated with a specific area, such as relationships, career, health, wellbeing, and spirituality. When the Rahu is present in a particular house, it adds its own unique energy and influence to that area.Order Reports|For consultation
Here's a breakdown of the Rahu's influence in each of the 12 houses:Choose the language to read below
राहु / Rahu
Rahu In the First House
थम भाव- पहले भाव में राहू यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक ज़मीन से आसमान की उचाईयों को छूता है। पहले भाव में राहु शिक्षा में अवश्य अवरोध उत्त्पन्न करता है परन्तु जातक को समाज में उच्च पद व सम्मान दिलवाता है। वह ये स्थान अचानक व शीघ्रता से प्राप्त करता है। राहु यदि पहले स्थान में हो तो जातक कभी किसी के द्वारा की गयी नींदा की चिंता नहीं करता और उसे जो मार्ग पसंद है उसी पर चलता है ! कुंडली के पहले भाव में राहू के अशुभ प्रभाव से जातक की प्रवर्ती दुष्ट किस्म की होती है, वह बहुत स्वार्थी, नीच काम करने वाला, सभी से शत्रुता रखने वाला, अत्यन्त कामी होता है, उसकी संतान भी कम होती है तथा, सिर अथवा मुख पर कोई चिन्ह अवश्य होता है, जातक के दो विवाह होने की पूरी सम्भावना रहती है तथा शरीर से रोगी और दुर्बल होता है ! राहु पहले भाव में यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो जातक को जीवनसाथी का सुख प्राप्त नहीं होता है। यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक के दो विवाह होने की पूरी सम्भावना रहती है अथवा जातक अपनी पहली पत्नी से असंतुष्ट होता है और दूसरे साथी की तलाश में रहता है ! राहू यदि वायु तत्व (मिथुन, तुला व कुंभ) राशि का राहू वाला जातक सदैव दूसरों के कार्य को गलत कहता है और हर कार्य की निन्दा करता है। वह दूसरों के कार्यों में तो कमी निकालता है तथा हर सम्भव प्रयास करता है कि उसका कार्य किसी भी प्रकार से पूर्ण न हो परन्तु अपने कार्य में किसी का भी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता है।
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Rahu In the Second House
द्वितीय (धन भाव)- राहु यदि कुंडली के दित्तीय भाव में स्थित हो तो जातक को विदेश में रहने वाला अथवा परिवार से दूर होता है ! उसके बच्चे कम अथवा परिवार छोटा होता है ! राहु दित्तीय भाव में वाणी को कठोर बनता है क्योकि कुंडली का द्वितीय भाव वाणी भाव भी होता है , धन भाव में राहु के कारन जातक गरीब होता है, बुरे विचार व हकला कर बोलने वाला, और जीवनसाथी की अचानक मृत्यु से दुखी अथवा शीघ्र क्रोधी तथा अचानक चोरी से धनहानि उठाने वाला होता है। राहू यदि स्थिर राशि (वृषभ, सिंह, वृश्चिक व कुंभ) जातक को संपत्ति का लाभ मिलता है ! अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि में अन्य हानि अधिक होती है। स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में राहू होने पर जातक अपनी सम्पत्ति गिरवी रखकर अथवा किसी अन्य प्रकार से कोई लघु उद्योग आरम्भ करता है तथा वह इसमें सफल भी होता है। जातक किसी पर फिजूल खर्च नहीं करता किन्तु उसे कंजूस भी नहीं कह सकते क्योंकि वह विशेष अवसर व समय पर खर्च भी करता है। यदि धन व सम्मान में से किसी एक को चुनने को कहा जाये तो वह सम्मान अधिक पसन्द करते हैं। ऐसे जातक वाणी के कठोर होते हैं। राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक अपने पिता की सम्पत्ति का नाश करता है अथवा किसी अन्य कारण से उसे सम्पत्ति प्राप्त ही नहीं होती है परन्तु उसे किसी न किसी की सम्पत्ति अवश्य मिलती है। पिता के अतिरिक्त किसी अन्य की सम्पत्ति मिलने पर जातक की संतान को दुष्परिणाम भोगने पड़ते हें हालांकि वह सम्पत्ति का भोग अवश्य करता है।
Rahu In the Third House
तृतीय (पराक्रम भाव)- कुंडली के तीसरे भाव में राहु अच्छे फल प्रदान करता है, ऐसा जातक विद्वान तथा एक अच्छा व्यापारी होता है।परन्तु पराक्रम से हीन होता है, पक्के विचार वाला, बलवान व योगाभ्यासी होता है। इस राहू के प्रभाव से जातक की प्रथम संतान किसी प्रकार से सदा के लिये दूर होते देखा है। पहली संतान विदेश में रह सकती है ।यदि जातक अपने भाइयों के साथ रहे तो किसी की भी उन्नति नहीं होती।ऐसे जातक का जीवनसाथी अच्छे स्वभाव का होता है तथा जातक की प्रत्येक क्षेत्र में मदद करता है। जातक की चित्रकला व फोटोग्राफी में रुचि होती है और वह इन कार्यों में निपूर्ण होता है।ऐसा जातक अपने निर्णय तुरन्त लेने वाला परन्तु चंचल प्रवृत्ति का होता है। इस राहू पर यदि शुभ प्रभाव हो तो वह जातक को भी उच्च स्थान तक पहुँचाने में सक्षम होता है। राहु तीसरे स्थान में जातक को विदेश यात्राये भी करवाता है। परन्तु राहु तीसरे स्थान में जातक के भाई व् बहनो के लिए अच्छे फल नहीं देता। कम भाई बहन होते हैं और उनसे रिश्ते ठीक नहीं रहते है। भाइयों की अपघात से मृत्यु संम्भावना होती है और उनकी संतान भी कम अथवा नहीं होती। भाई कामचोर व नकारा हो सकते हैं परन्तु वह बहिन के दुःख से दुःखी होता है। राहू यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो भाइयों के स्थान पर बहिनों के लिये घातक होता है।
Rahu In the Fourth House
चतुर्थ (सुख भाव)- कुंडली का चौथा भाव माता , विद्या, सुख भाव होता है।यदि राहू इस भाव में हो तो जातक को दुखी, असन्तोष, माता से क्लेश करने वाला, क्रूर स्वभाव, कम बोलने वाला, जूठ बोलने वाला, विदेशी भाषा का ज्ञान, पिता को आर्थिक रूप से हानि देने वाला होता है। राहू चौथे भाव में जातक को विद्या में अवरोध देता है। ऐसा जातक जीवन में एक बार अवश्य अपने घर का त्याग करता है, बचपन में गलत संगत में पड़ने के कारण विद्या में अवरोध उत्त्पन होता है। राहू यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो जातक व्यापार में सदैव समस्याएं आती है और व्यापार कभी भी सही तरीके से नहीं चलता है।ऐसे जातक को जीवन में कई व्यापार बदलने पड़ते है परन्तु फिर भी सफलता नहीं मिलती। यदि वह किसी के साथ साझेदारी करे तो सफल हो सकता है अथवा नौकरी में सफल होता है। वह गलत कार्य करके अधिक धन अर्जित करता है। ऐसे जातक की संतान भी कम होती है,यदि गुरु का शुभ प्रभाव पाचवे भाव पर हो तो संतान अधिक हो सकती है। ऐसे जातक का जीवनसाथी बहुत ही अच्छे स्वभाव का होता है परन्तु जातक को उसकी कद्र नहीं होती। यहाँ राहू यदि शनि के साथ योग बनाये तो जातक बहुत गरीब होता है तथा एक पुराने घर में निवास करता है। यदि सूर्य, मंगल, चन्द्र व शनि से योग करे तो जातक पित्त विकार, रक्तपित्त विकार, क्षय रोग, कुष्ठ रोग व अन्य स्नायु विकार होते हैं। राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक का पिता बहुत कष्ट उठाता है। क्योकि राहु की दृष्टि दसवे स्थान अथवा पिता भाव पर पड़ती है इसीलिए पिता को जीवन में अत्यंत कष्ट उठाने पड़ते है, पिता का व्यापार नष्ट हो जातात है अथवा हानि देता है। नौकरी करता हो तो उसे निष्कासित कर दिया जाता है। राहू यदि मेष, सिंह अथवा कंुभ राशि में हो तो सम्पत्ति देता है। संतान के लिये जातक दुःखी रहता है और उसे दूसरा विवाह करने की सम्भावना रहती है।
Rahu In the Fifth House
पंचम (संतान व विद्या भाव)- कुंडली के पांचवे भाव में राहू होने से जातक बुद्धिमान नहीं होता परन्तु किसी भी कारण से उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल रहता है।उसके पास धन की कमी हमेशा रहती है और यदि पैतृक धन प्राप्त हो जाये तो उसका नाश कर देता है।पांचवा भाव संतान भाव होने के कारण ऐसा राहू सन्तान पक्ष में बाधा के साथ कष्ट भी देता है। यदि ऐसा जातक लेखन का कार्य करे तो यश व धन दोनों की प्राप्ति होती है। ऐसे राहू के प्रभाव से जातक को प्रथम संतान कन्या के रूप में प्राप्त होती है। यहाँ का राहू पितृदोष भी देता है। ऐसे जातक को यदि संतान बाधा हो तो वह पितृदोष की शान्ति अवश्य करवानी चाहिए अन्यथा संतान कष्ट कभी ख़तम नहीं होगा। इस भाव में राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक बहुत ही बुद्धिमान, ख्यातिवान परन्तु कुछ संकोची अथवा घमण्डी होता है। उसकी शिक्षा में अवरोध आते हैं अथवा विद्या की गति कुछ धीमी होती है। ऐसा राहू जातक को उसकी इच्छानुसार विद्या प्राप्त नहीं होने देता है। इस कारण उसका शिक्षा में पूरा मन नहीं लगता है। जितनी उसकी योग्यता होती है, उतनी वह न तो शिक्षा ले पाता है और न ही नौकरी कर पाता है। यदि व्यवसाय करे तो भी अधिक लाभ नहीं होता। ऐसे जातकों को लाटरी और सट्टे से नुक्सान हो सकता है, इसलिए पाचवे स्थान में स्थित राहु का उपाय अवश्य करे !
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Rahu In the Sixth House
षष्ठ (शत्रु व रोग भाव)- कुंडली के छटे भाव में राहु अच्छे फल प्रदान करता है। इस भाव में राहु जातक को बहुत ही प्रभावशाली व पराक्रमी बना देता है। कुंडली का छठा भाव शत्रु भाव होता है तो राहु जातक को शत्रु अथवा विरोधियों से भी लाभ दिलवाता है। वह सदैव बड़े-बड़े कार्य करता है तथा उसकी सोच हमेशा ऊपर रहती है। ऐसे जातक को कमर दर्द, नेत्र व दंत रोग होने की सम्भावना होती है। कुंडली का छठा भाव मां और मौसी का भाव होता है और इस भाव में राहु जातक के मामा व मौसी के लिये भी कष्टकारक होता है। यहाँ पर राहू यदि किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो उसका भाग्योदय शीघ्र हो जाता है। आजीविका अथवा रोज़गार भी उसे बिना किसी बाधा के शीघ्रता से मिलता है। यदि राहू पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो फिर जातक का बचपन बहुत ही कष्ट में व्यतीत होता है। बच्चे को मस्तिष्क रोग, भूत-पिशाच बाधा, नेत्र रोग की पूर्ण सम्भावना होती है। यदि शनि भी दुष्प्रभाव में हो तो कुष्ठरोग व मिरगी भी हो सकती है। ऐसे जातक को वाहन चालन में सदैव एकाग्रता रखनी चाहिये अन्यथा भीषण दुर्घटना का भय रहता है। यहाँ पर राहू किसी भी प्रभाव में क्यों न हो, कुछ न कुछ शुभ फल अवश्य देता है जिसमें धनलाभ व शत्रुतहीनता मुख्य होती है। यदि राहू स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में आकर शुभ प्रभाव में हो तो फिर शुभ फल बहुत अधिक मिलते हैं। जातक को आर्थिक समृद्धि, शारीरिक निरोगता, पूर्ण पारिवारिक सुख, राज्य लाभ प्राप्त होता है। शत्रु भी सम्मान करते हैं।
Rahu In the Seventh House
सप्तम (जीवनसाथी भाव)- राहू कुंडली के सातवे भाव में अच्छे फल नहीं देता। यह भाव जीवनसाथी भाव के साथ मारक भाव भी है। इस भाव में राहू के प्रभाव से जातक को जीवनसाथी सदैव अस्वस्थ रहने वाला व क्लेशी प्रवृत्ति का मिलता है। जातक स्वयं भ्रमणशील, वात रोग से कष्ट, चतुर बुद्धि, लालची प्रवृत्ति व दुराचारी होता हैं। राहु सातवे भाव में जातक को व्यापार में भी असफलता और हानि देता है। क्योकि सत्व भाव हमारे यौन सम्बन्धो को दर्शाता है इसलिए राहु के बुरे प्रभाव से ऐसा जातक सदैव घर के बाहर सम्बन्ध बनाने का इच्छुक होता है।यदि लग्नेश की स्थिति अशुभ हो तो जातक का विवाह किसी अधिक आयु वाले से होने की सम्भावना होती है अथवा जाति व समाज से बाहर वाले के साथ सम्बन्ध होने के कारन समाज में बदनामी होती है। जातक स्त्री हो अथवा पुरुष, उसके अधिक आयु वाले से अवैध सम्बन्ध अवश्य बनते हैं। सप्तम भाव व उसके स्वामी पर किसी अन्य पापी ग्रह के प्रभाव होने से या तो विवाह न होना, विवाह में विलम्ब अथवा विवाह पश्चात् सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते। इसमें भी यदि राहू मिथुन, कन्या, तुला या धनु राशि में हो तो विवाह की सम्भावना क्षीण होती है। जातक को मधुमेह व प्रमेह जैसे रोग की सम्भावना होती है। जातक की समय के साथ-साथ ख्याति अधिक होती है। भारतीय ज्योतिष के आधार पर पूर्व जन्म के दुष्कर्म के प्रभाव से जातक को इस जन्म में राहू का यह योग प्राप्त होता है। ऐसे जातक को इस जन्म में दाम्पत्य सुख नहीं मिलता है। इसमें जातक अवैध सम्बन्ध बनाये या फिर किसी अन्य कारण से विवाह हो जाये तो वह गर्भपात अवश्य कराता है। इस राहू के प्रभाव से जातक की नौकरी छूट सकती है अथवा व्यवसाय में हानि हो सकती है।
Rahu In the Eighth House
अष्टम (मारक भाव)- राहु कुंडली के आठवे भाव में अशुभ फल अधिक देता है। ऐसा जातक अत्यधिक कामी होता है। इस कारण जातक को गुप्त रोग होने की सम्भावना रहती है।जिन जातक का राहु आठवे भाव में हो उन्हें वेश्या से सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए अन्यथा गुप्त रोग अवश्य होता है।राहु आठवे भाव में जातक को गंदे और मलीन विचारो वाला बनता है , ऐसा जातक बात-बात पर क्रोध करता है।परन्तु जातक कठिन परिश्रम अवश्य करता है फिर भी उसे उसका पूर्ण फल नहीं मिलता है। क्योकि राहु की दृष्टि कुंडली के दूसरे भाव पर है इसीलिए ऐसे जातक की मृत्यु विष अथवा दुर्घटना में मूर्छित अवस्था में हो सकती है। यदि राहू अधिक अशुभ प्रभाव में आये तो जातक को गुदा रोग व प्रमेह जैसे रोगों के साथ अत्यधिक शत्रु पीड़ा होती है।राहू यदि मिथुन राशि में हो तो जातक बहुत ही हिम्मत वाला व यश प्राप्त करने वाला होता है। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन भी सुख में व्यतीत होता है। राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो जात अधिक अशुभ फल प्राप्त होते हैं। उसे कामी, कलहप्रिय तथा चरित्रहीन जीवनसाथी मिलने की सम्भावना रहती है। वह जातक को इतना अधिक दबा कर रखता है कि वह कुछ बोल भी नहीं पाता है। पुरुष की पत्रिका में ऐसा राहू हो तो जातक स्वयं धन संग्रह नहीं कर पाता है परन्तु धन का इतना लालची होता है कि धन के लिये वह कुछ भी कर सकता है। यदि सरकारी नौकरी में होता है तो रिश्वत लेता है और पकड़ा जाता है। कारावास भी भोगता है। उसे पत्नी बहुत ही निम्न वर्ग की धनहीन परिवार से मिलती है। राहु के अशुभ प्रभाव के चलते जातक व्यापर में सफल नहीं होता, ऐसे जातको को राहु के उपाय अवश्य करने चाहिए।
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Planet's Positions
Rahu In the Ninth House
नवम (धर्म व भाग्य भाव)- कुंडली के नवम भाव में राहू यदि अधिक अशुभ हो तो बचपन में ही पिता का सुख छीन लेता है। जातक मेहनती होता है परन्तु उसे उसके परिश्रम का पर्याप्त फल प्राप्त नहीं होता। वह अधिकतर जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश में प्रवास करता है। भाग्यहीन, दुष्टबुद्धि परन्तु धार्मिक स्वभाव का होता है। ऐसे जातक की संतान भी कम ही होती है।अपने जीवनसाथी से बेहद प्रेम करने वाला तथा विदेश यात्रा अवश्य करता है। उसे वृद्धावस्था में राज्य सम्मान व पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। इस भाव में राहू स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) का हो तो जातक की कई संतानों की असमय मृत्यु होने की सम्भावना रहती है। जिसमें पहले कन्या फिर मध्यवय में पुत्र संतान होती है। जातक बहिनों के लिये कष्टप्रद होता है। भाई यदि एक साथ रहते हो तो उन्नति नहीं कर पाते। अलग-अलग रहें तो अवश्य कुछ उन्नति कर सकते हैं। राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक भाई के सुख से हीन होता है। अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि के राहू के प्रभाव से जातक का दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। राहू वायु तत्व (मिथुन, तुला व कुंभ) राशि में होने पर जातक अपने जीवनसाथी को मात्र भोग की वस्तु समझता है। उसके संतान नहीं होती। यदि यह योग किसी पुरुष की पत्रिका में हो तो संतान के लिये उसे दूसरा विवाह करना पड़ता है। ऐसा जातक किसी विदेशी स्त्री से विवाह कर विदेश भी जा सकता है। ऐसा राहू छोटे भाई की मृत्यु का भी द्योतक है। राहू यदि सिंह राशि में इस भाव में बैठा हो तो जातक को पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है परन्तु यदि शनि की किसी भी राशि में हो तो पिता के सुख में अवश्य ही कमी आती है। ऐसे जातक के भाग्य के कार्यों में अवश्य ही अवरोध आता है। वह अपने जीवन के आरम्भ में बहुत संघर्ष करता है।
Rahu In the Tenth House
दशम (पिता व कर्म भाव)- कुंडली के दसवे भाव में राहू जातक आलसीबनता है, जातक बेहद बातूनी होता है और अपने कार्य को कभी भी नियमित तरीके से नहीं करता। जातक के संतान के साथ मतभेद रहते है। यदि जातक राजनीती में हो तो एक कठोर शासक के रूप में उभरता है, बहुत प्रतिभाशाली एवं विद्वान होता है। ऐसा जातक जीवन मे यदि मेहनत करे तो अत्यधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। राहु के अशुभ प्रभाव से जातक के अवैध सम्बन्ध बनते है। ऐसा जातक पिता के लिये अतिकष्टकारक होता है क्योकि दसवा भाव पिता भाव होता है। राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक बहुत घमंडी, विवेकहीन तथा समाज व जाति से अलग रहने वाला होता है। ऐसा जातक यदि सैन्य सेवा, पुलिस, बैंक, बीमा, रेलवे तथा कोषागार में नौकरी करे तो अधिक लाभ होता है। राहू यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो जातक के पिता के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं होते इस कारन से जातक को पैतृक सम्पति नहीं मिलती, किसी अन्य योग से यदि पैतृक सम्पत्ति मिल भी जाये तो ज्यादा दिन नहीं टिकती। वह उसका नाश कर डालता है। ऐसा जातक अपने आरंभिक जीवन में बहुत कष्ट पाता है। काफी संघर्ष करने के बाद सफलता प्राप्त करता है। अपने वृद्धावस्था तक वह सम्पत्ति का संचय व सम्मान प्राप्त कर पाता है। अपने किसी भी कार्य में दूसरों का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता है।
Rahu In the Eleventh House
राहु कुंडली के ग्यारहवे भाव में क्या फल देता है। एकादश (आय भाव)- कुंडली के ग्यारहवे भाव में राहू अधिकतर शुभ फल प्रदान करता है। जातक की संतान कम होती है। पेट सम्बन्धी समस्या रहती है, ऐसा जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। अधिकतर ऐसे जातक को किसी अनैतिक कार्यों से धन प्राप्त होता है। संतान समस्याओं से हमेशा परेशान रहता है। ग्यारहवे भाव में राहु व्यक्ति को मशीनरी, चमड़ा उद्योग, लाटरी जैसे कार्यों से अचानक आर्थिक लाभ देता है। परन्तु ग्यारहवे भाव में राहु की स्थिति जातक को बेहद लालची बना देती है और ऐसे लोग अपने लोगों का धन हड़पने में पीछे नहीं रहते हैं। ऐसा व्यक्ति यदि उच्च सरकारी पद पर हो तो वह रिश्वत अथवा कमीशन लेता है परन्तु उसके पकड़े जाने की सम्भावना बानी रहती है, इस स्थति में यदि राहु अशुभ फल दे तो जातक की जेल तक जाना पड़ता है। यहाँ पर राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक को पुत्र सुख प्राप्ति में बेहद परेशानी होती है। यह भी एक प्रकार का पितृदोष ही होता है। इस कारण स्त्री जातक हो तो गर्भस्राव अथवा बंध्यत्व के कारण संतान नहीं होती है। कुंडली के बारहवे भाव में राहू जातक को बुद्धि बहुत देता है परन्तु शिक्षा में अवरोध भी बहुत देता है। क्योकि ग्यारहवे भाव से राहु की सीधी दृष्टि पाचवे भाव अथवा शिक्षा स्थान पर पड़ती है। जातक उच्च स्तर का लालची व स्वार्थी होता है। उसको आय का क्षेत्र ऐसा मिलता है जहाँ उसकी आय अचानक होती है और हानि भी उतनी ही अचानक होती है। इसलिए ऐसे जातको को अपने व्यवसाय में अधिक जोखिम नहीं उठाना चाहिए अन्यथा राजा से रैंक जैसी स्थिति बन सकती है।
Rahu In the Twelveth House
द्वादश (व्यय भाव)- कुंडली के बारहवे भाव में राहू के अशुभ फल अधिक मिलते हैं। जातक अत्यधिक व्यर्थ खर्च करने वाला, सदैव चिन्ता में रहने वाला तथा काम-वासना से पीड़ित रहता है। ऐसा व्यक्ति अधिकतर नीच कर्मों में लीन रहता है। कुंडली का बारहवा स्थान शैया सुख तथा नेत्र स्थान होता है, राहु की स्थिति यहाँ पर जातक को शैय्या सुख से हीन और क्लेशयुक्त वैवाहिक जीवन तथा नेत्र रोग प्रदान करती है। ऐसा जातक योग में बहुत विश्वास करता है। इस भाव में राहू केवल मिथुन, धनु और मीन राशि में लाभ देने वाला होता है। राहु बारहवे भाव में जातक को जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश में वास करवाता है। ऐसे जातक अपनी जन्म भूमि पर सफलता नहीं मिलती, उसे अपने जीवन यापन के लिए जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है. किसी पुरुष जातक की पत्रिका में यदि राहू पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में होने पर जातक नेत्र रोगी होता है। जातक अपनी पत्नी से असन्तुष्ट होकर किसी अन्य स्त्री से सम्पर्क बनाता है, इसका कारण स्त्री का अधिक बीमार रहना अथवा अधिकतर अपने माता-पिता के पास रहना प्रमुख कारण होता हे। राहू यदि स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में हो तो जातक के द्विविवाह के योग होते हैं। फिर भी जीवनसाथी से सुख कम ही प्राप्त होता है। संतान अधिक होती है। जीवन के आरम्भ में समस्यायें बहुत आती हैं। ऐसा जातक अपने पराक्रम व साहस के दम पर अपनी जीविका के लिये परदेस में निवास करता है तथा सफलता प्राप्त करता है।
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