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Guruvar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सप्ताह की शुरुआत रविवार से मानी जाती है इस लिहाज से मंगलवार सप्ताह का तीसरा दिन है। मंगलवार यानि मंगल का दिन अब मंगल ग्रह भी हैं जिन्हें पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी का पुत्र अर्थात भौम भी कहा जाता है साथ ही भगवान हनुमान को भी मंगल कहा जाता है। मंगल का अर्थ कुशल, शुभ अर्थात कल्याण से भी लिया जाता है। हिंदू तो किसी कार्य के आरंभ के लिये इस दिन को पवित्र और शुभ भी मानते हैं। इस दिन श्री राम भक्त पवन पुत्र श्री बजरंग बलि हनुमान की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। हनुमान को संकटमोचन भी कहा जाता है इसलिये मान्यता है कि मंगलवार को हनुमान की पूजा उपासना करने सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं।
मंगलवार पूजा ( व्रत पूजा विधि)
हिंदू धर्म में मंगलवार के व्रत का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। मान्यता है कि विधिपूर्वक व्रत रखने से व्रती सभी तरह के भय और चिंताओं से मुक्त हो जाता है। शनि की महादशा, ढ़ैय्या या साढ़ेसाती की परेशानी को दूर करने के लिये भी यह व्रत बहुत कारगर माना जाता है। व्रती को इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और मंगलवार के दिन सूर्योदय से पहले ही उठ जाना चाहिये। नित्यक्रिया से निपट कर स्नान कर स्वच्छ होना चाहिये। लाल रंग के वस्त्र धारण करना भी शुभ रहता है। तत्पश्चात हनुमान जी को लाल फूल, सिंदूर, वस्त्रादि चढ़ाने चाहिये। श्रद्धापूर्वक हनुमान जी की प्रतिमा के सामने ज्योति जलाकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करना चाहिये। शाम के समय बेसन के लड्डूओं या फिर खीर का भोग हनुमान जी को लगाकर स्वयं नमक रहित भोजन करना चाहिये। मान्यता है कि मांगलिक दोष से पीड़ित जातकों को भी मंगलवार का व्रत रखने से लाभ होता है।
मंगलवार पूजन विधि मंगलवार व्रत की शुरूआत शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से करनी चाहिए. इस व्रत को आठ मंगलवार अवश्य करें. इस व्रत में गेहूं और गुड़ से बना भोजन ही करना चाहिए. एक ही बार भोजन करें. लाल पुष्प चढ़ायें और लाल ही वस्त्र धारण करें. अंत में हनुमान जी की पूजा करें.
मंगलवार Aarti
॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,
श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥
॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥