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Guruvar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi
हस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यह दिन उत्तम माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की बृहस्पति देव के रूप में पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करता है उसकी हर एक मनोकामना पूरी होती है। बृहस्पतिवार का व्रत लगातार 16 बृहस्पतिवार तक रखा जाता है और 17वें बृहस्पतिवार के दिन इसका विधिवत रूप से उद्यापन होता है। अगर आप बृहस्पतिवार का व्रत रख रहे हैं तो बृहस्पतिवार के कुछ नियमों का पालन अवश्य करें। बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि, आरती, महत्व और कथा आप यहां पढ़ सकते हैं।
Guruvar Vrat Puja Vidhi (बृहस्पतिवार व्रत पूजा विधि)
गुरुवार के दिन स्नानादि करके भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। अब भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल और हल्दी अर्पित करें। इसके साथ भगवान विष्णु को गुड़ और चना का भोग लगाएं। हल्दी में जल मिलाकर भगवान का अभिषेक करें और हाथ में गुड़ और चना लेकर गुरुवार व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती करने के बाद आप फल का सेवन कर स4ते हैं।
Guruvar Vrat Puja Aarti (बृहस्पतिवार व्रत पूजा आरत)
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥
बहन ने बताई बृहस्पतिवार व्रत की विधि तब रानी ने अपनी बहन को सारी बात बता दी जिसके बाद बहन ने कहा कि बृहस्पति देव हर एक इंसान की इच्छा पूरी करते हैं। एक बार देखो तुम्हारे घर में अनाज रखा है या नहीं। तब रानी ने अपनी दासी को घर में अनाज देखने के लिए भेजा। रानी की दासी जब अनाज ढूंढने गई तब उसने देखा कि एक घड़े में अनाज भरा हुआ है। तब दासी ने रानी को कहा कि क्यों ना वह भी बृहस्पतिवार का व्रत रखें। तब रानी की बहन ने बृहस्पतिवार व्रत की विधि बताई। अपनी बहन द्वारा बताई गई विधि के अनुसार रानी और उसकी दासी ने गुरुवार का व्रत रखा। जिस वजह से भगवान बृहस्पति देव उनसे खुश हो गए और साधारण रूप धारण करके दासी को दो थाल में पीला भोजन दे गए। जब दासी को यह भोजन मिला तब वह रानी के साथ भोजन ग्रहण करने लगी।
ॐ जय जगदीश हरे आरती (Aarti: Om Jai Jagdish Hare)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, स्वामी दुःख बिनसे मन का । सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी । तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी । पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता । मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति । किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे । अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा । श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥ ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥